Brief Intro — Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari | Peethadhipati Of Maheshwari Akhada | Maheshwari Akhara

महेशाचार्य योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज का संक्षिप्त परिचय

(In Hindi and English) 


Yogi Premsukhanand Maheshwari Maharaj is peethadhipati of the "Divyashakti Yogpeeth Akhara (which is known as Maheshwari Akhada, is famous)", the highest Gurupeeth of Maheshwari community, and hence he is "Maheshacharya". Maheshacharya is the supreme / highest Guru post of Maheshwari community. Yogi Premsukhanand Maheshwari is known not only as the Peethadhipati of Maheshwari Akhara and Maheshacharya but known also as the "patron" of Maheshwari community and Maheshwari culture; and he is also a researcher, writer and historian of the history of Maheshwari community.

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The book titled "Maheshwari Utpatti evam Itihas (Maheshwari – Origin and Brief History)" has been written by Yogi Premsukhanand Maheshwari. Providing a comprehensive view of Maheshwari history, philosophy and culture; the book is widely considered to be one of the finest modern works on Maheshwari history. Yogi Premsukhanand Maheshwari is one of the most renowned historians, researchers and authors in the Maheshwari community. He is best known for his outstanding contributions to research on origin of Maheshwari community and ancient Maheshwari history.

Maheshacharya Yogi Premsukhanand Maheshwari has successfully conducted about 150 yoga and health camps across India. He has conducted several one day (one and a half hour) seminars on the role of Yoga in further enhancing the intelligence of the students, which has also benefited the students in keeping themselves stress free.

The main objective of all the activities of Maheshcharya Yogi Premsukhanand Maheshwari Maharaj is to bind the people of Maheshwari community living in different areas of India in the thread of unity, and to restore the community to the highest peak of glory by giving meaning to the basic principle of Maheshwari Samaj “Sarve Bhavantu Sukhinah”. Yogi Premsukhanand Maheshwari is giving lectures on the subjects like conservation and promotion of Maheshwari culture, health, stress free life etc. Yogi Premsukhanand Maheshwari is continuously working for the propagation of Sanatan Dharma and Maheshwari culture, and the revival of Maheshwari community.

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प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च गुरुपीठ "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (जो माहेश्वरी अखाड़ा के नाम से प्रसिद्ध है)" के पीठाधिपति है, और इसलिए वे "महेशाचार्य" है। महेशाचार्य यह माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च गुरुपद है। योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी ना केवल माहेश्वरी अखाड़े के पीठाधिपति और महेशाचार्य के रूप में माहेश्वरी समाज और माहेश्वरी संस्कृति के "संरक्षक" के रूप में जाने जाते हैं बल्कि वे माहेश्वरी समाज के इतिहास के एक शोधकर्ता, लेखक और इतिहासकार भी हैं।

माहेश्वरी - उत्पत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास नामक पुस्तक प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी द्वारा लिखी गई है। यह पुस्तक माहेश्वरी इतिहास, दर्शन और संस्कृति का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है; इस पुस्तक को व्यापक रूप से माहेश्वरी इतिहास पर बेहतरीन आधुनिक कार्यों में से एक माना जाता है। महेशाचार्य योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज माहेश्वरी समाज के सबसे प्रसिद्ध इतिहासकारों, शोधकर्ताओं और लेखकों में से एक हैं। उन्हें माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति और प्राचीन माहेश्वरी इतिहास पर शोध में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए जाना जाता है।

महेशाचार्य योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी ने भारतभर में लगभग 150 योग एवं स्वास्थ्य शिबिरों का सफलतापूर्वक सञ्चालन किया है। उन्होंने छात्रों / विद्यार्थियों की बुद्धिमत्ता को और अधिक निखारने में योग की भूमिका पर एक दिवसीय (देढ़ घंटा) के कई सेमिनार लिए है, जिससे छात्रों को खुदको तनावमुक्त रख सकने में भी लाभ मिला है।

प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज के सभी गतिविधियों का मुख्य उद्देश्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बसनेवाले माहेश्वरी समाजजनों को एकता के सूत्र में बांधकर माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांत "सर्वे भवन्तु सुखिनः" को सार्थ करते हुए समाज को गौरव के सर्वोच्च शिखर पर पुनःस्थापित करना है। प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी, माहेश्वरी संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन, स्वास्थ्य, तनावमुक्त जीवन आदि विषयोंपर व्याख्यान देनेका कार्य कर रहे हैं। योगी प्रेमसुखानन्दजी लगातार सनातन धर्म और माहेश्वरी संस्कृति के प्रचार-प्रसार तथा माहेश्वरी समाज के पुनरुत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं।


महेशाचार्य योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी माहेश्वरी वंश (समाज) के सर्वोच्च धार्मिक पीठ / माहेश्वरी गुरुपीठ "माहेश्वरी अखाड़ा" के पीठाधिपति है। योगी प्रेमसुखानन्दजी महाराज ने हिमालय की दुर्गम पहाड़ियों में योग एवं ध्यान साधना की है। उन्होंने माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति एवं इतिहास पर गहन अध्ययन और शोध किया है। उन्होंने माहेश्वरी समाज के उत्पत्ति से लेकर अबतक के लगभग 5100 वर्ष के इतिहास पर संशोधन किया, उन्हें साक्ष्यों-संदर्भों-प्रमाणों-तर्कों-तत्थों पर परखा, घटनाओं की संगती लगाई और "माहेश्वरी - उत्पत्ति एवं इतिहास" के नाम से पुस्तक की रचना की, पुस्तक लिखी। योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी द्वारा लिखित यह पुस्तक माहेश्वरी समाज के इतिहास के बारेमें अबतक लिखी गई पुस्तकों में सबसे ज्यादा प्रमाणित तथा विस्तृत जानकारी से युक्त पुस्तक मानी गई है। योगी प्रेमसुखानन्दजी के इस ऐतिहासिक कार्य के बदौलत माहेश्वरी समाजजन अब इस बात को जानते है की वे यह कीतवीं 'महेश नवमी' मना रहे है, माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति (उत्पत्ति/स्थापना) आज से ठीक कितने वर्ष पूर्व हुई थी। उनका यह कार्य, यह पुस्तक निश्चितरूपसे माहेश्वरी समाज की आनेवाली पीढ़ियों को माहेश्वरी संस्कृति, रीती-रिवाज और अपनी विरासत से जोड़े रखनेका कार्य करेगा। माहेश्वरी समाज की गौरवमयी विशिष्ठ पहचान को बनाये रखने का कार्य करेगा।

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महेशाचार्य योगी प्रेमसुखानन्दजी माहेश्वरी महाराज जी के सभी गतिविधियों का मुख्य उद्देश्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बसनेवाले माहेश्वरी समाजजनों को एकता के सूत्र में बांधकर माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांत "सर्वे भवन्तु सुखिनः" को सार्थ करते हुए समाज को गौरव के सर्वोच्च शिखर पर पुनःस्थापित करना है माहेश्वरी समाज के संस्कृति और विशिष्ठ पहचान को कायम रखने तथा उत्तरोत्तर बुलंद करने के लिए योगी प्रेमसुखानन्द जी ने ही सर्वप्रथम यह संकल्पना रखीं की जहाँ जहाँ, जिन जिन शहरों में माहेश्वरी समाज के लोग बड़ी मात्रा में निवास करते है वहाँ "श्री महेश चौक" बनाये जाएँ, स्थापित किये जाएं जो की माहेश्वरी समाज की, माहेश्वरी गौरव की पहचान बनें। इसी संकल्पना को साकार करने का श्रीगणेशा (प्रारम्भ) करते हुए योगी प्रेमसुखानन्द जी ने वर्ष 1994 में अपनी जन्मभूमि बीड शहर (महाराष्ट्र) के विप्रनगर में देश-दुनिया के पहले "श्री महेश चौक" की स्थापना की। वर्तमान समय में देश के अनेको शहरों में स्थापित "महेश चौक" को देखकर हम माहेश्वरीजनों को गर्व की अनुभूति होती है लेकिन इस संकल्पना को रखने और इसे सर्वप्रथम क्रियान्वित करने का, देश-दुनिया का सबसे पहला "श्री महेश चौक" बनाने का ऐतिहासिक कार्य प्रेमसुखानन्दजी माहेश्वरी महाराज द्वारा ही संपन्न हुवा है।

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योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी जी ने मात्र 30 वर्ष की उम्र में हिमालय की पहाड़ियों में योग साधना की, अनेको योगियों से योग, ध्यान, ज्ञान और आशीर्वाद प्राप्त किया फिर उन्होंने रुख किया समाजसेवा की ओर। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन अध्यात्म और समाज के लिए समर्पित किया है। उन्होंने समाज के लिए काम करने का संकल्प लेते हुए "माहेश्वरी अखाड़ा" की स्थापना की (देखें Link > क्या है माहेश्वरी अखाड़ा? जानिए माहेश्वरी अखाड़े के बारेमें...)। ई.स. 2008 में औपचारिक रूप से, एक अधिकारीक नाम 'दिव्यशक्ति योगपीठ अखाडा' के नाम से माहेश्वरी गुरुपीठ परंपरा को पुनर्स्थापित (Restore) किया। इसकी स्थापना माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च आध्यात्मिक एवं सामाजिक प्रबंधन संस्था के रूप में की गई है। माहेश्वरी वंश (समाज) के इस अखाड़े की स्थापना के समय इसे दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़े के नाम से पंजीकृत किया गया था लेकिन यह माहेश्वरी अखाड़ा के नाम से प्रसिद्ध है। यह ट्रस्ट समाज हित के अनेक कार्य कर रहा है।

योगी प्रेमसुखानन्दजी भ्रूण-हत्या, जुवा और नशीले पदार्थो के सेवन को सबसे जघन्य अपराध मानते हैं और अपने सम्बोधन में सभी से प्रार्थना करते हैं कि ऐसा जघन्य अपराध न करें। विभक्त परिवार और समाज में एकता के अभाव को समाज के पतन का कारण मानते हैं। अच्छी संगत और अच्छे चरित्र को सबसे बड़ी सम्पदा मानते है। गो-सेवा को जीवन निर्माण का एक अंग मानते हैं और अपने व्याख्यानों (प्रवचनों) में इन सभी बातों पर विशेष जोर देते हैं। महाराज जी माहेश्वरी संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन, स्वास्थ्य, तनावमुक्त जीवन आदि विषयोंपर देश-विदेशमें व्याख्यान देनेका कार्य कर रहे हैं। छात्रों की बुद्धिमत्ता को और अधिक निखारने में योग की भूमिका पर उन्होंने खास ध्यान देते हुए इसपर लम्बे समय तक अध्ययन किया है और "योगा फॉर स्टूडेंट्स ब्रेन डेव्हलपमेंट" के नाम से अनेको कार्यक्रम किये है। जनमानस को स्वास्थ्य के प्रति जागृत करने के लिए अनेको योग चिकित्सा शिबिरों का सञ्चालन किया है

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योगी प्रेमसुखानन्दजी 'भगवान महेशजी' को परमगुरु मानते है। उन्हें साधना में महामंडलेश्वर पायलट बाबा (जुना अखाडा), परमहंस निरंजनानंदजी सरस्वती (मुंगेर, बिहार) से मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त है। स्वामी अवधेशानंदजी गिरी, आचार्य किशोरजी व्यास उनके श्रद्धास्थान है।

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